असीमित इच्छाओं की उड़ान
असीमित इच्छाओं की उड़ान
असीमित इच्छाओं की ऊंची उड़ान से,
अक्सर गड़बड़ाती चैन खुशी की गाड़ी।
फंस जाते हैं बहुत ही बुरी तरह जब हम,
तब जान पाते मारी है निज पांव कुल्हाड़ी।
विशिष्ट लक्ष्य व प्रभु इच्छा से हम जग में आए,
पर बहु प्रपंच जग की माया में अक्सर भरमाए।
निज शक्ति और क्षमता का न हो पाता अनुमान,
अहंकार लालच में फंस कर लेते हम नुकसान।
देखा-देखी के चक्कर में ही जीवन के सफर में,
चला देते हैं तिरछी आड़ी निज जीवन की गाड़ी।
फंस जाते हैं बहुत ही बुरी तरह जब हम,
तब जान पाते मारी है निज पांव कुल्हाड़ी।
कहते अति सशक्त खुद को जो हो कहीं दिखाना,
लाभ के लिए बनते निर्बल तब बेहतर मिमियाना।
मैं अमीर ऊंचा कुल मेरा मैं तो हूं बहुत शक्तिशाली,
झूठ पर झूठ बोलने में तो पूर्ण महारत है पा ली।
पीछे-पीछे रहते कुछ त्याग करने में हम अक्सर,
पर लेने के अवसर पर अक्सर रहते सदा अगाड़ी।
फंस जाते हैं बहुत ही बुरी तरह जब हम,
तब जान पाते मारी है निज पांव कुल्हाड़ी।
सहज और अति सरल रहें निज क्षमता को पहचानें,
मिल जुल लक्ष्य करें पूरे निज सबको परिजन मानें।
परमपिता की विशिष्ट कृति हम यह न कभी भी भूलें,
अनुकरणीय निज चरित्र बनाकर उत्कृष्ट ऊंचाई छू लें।
श्रम से अर्जित हम करें शक्तियां विनम्रता धारण करके,
होआचरण आदर्श चलाएं निज जीवन की ऐसी गाड़ी ।
हों सब ही सहयोगी एक दूजे के हम सब इस जग में,
प्रसून हों रंग बिरंगे सुरभित सारे नहीं कंटीली हो झाड़ी।