सुलगती खामोशियां..
सुलगती खामोशियां..
हां अब दुनिया को हंस के दिखाना पड़ेगा..
गमों को शर्म से छुपाना पड़ेगा..
पल पल सुलगते घावों को..
अब कैसे तो सुहाना पड़ेगा..
तुम देख लेना शीशा एकबार..कही मुर्झे हम ना दिख जाये..
सुलझनें की कोशिश मे फिर..तुम्हारी उलझने और ना बढ़ जाये..
क्योंकि हर खुशी हर एहसास को..हम बस तुमसे जोड रखे थे..
के जब तुम आओगे हाथ थामने.. दिल की हर खिडकी खोल रखे थे..
कहते थे तुम यू के..गमों से उठके नये मंजर बनायेंगे..
हम जैसे साथी को पाकर..हर मुश्किल को जीत जायेंगे..
पर अफसोस के तुम हार चुके..खुद ही की कर्म कहानियों से..
फिर नजरे भी ना मिला पाये हो..मेरे पाक दिल की मेहेरबानियों से..
बस छोडो अब तुम साथ कहां ही निभाओगे..हम जैसा साथी अब तुम..भला कहां ही पाओगे..
पर फिर भी यादो में तो खैर..हर रोज हम ही को लाओगे..
हर पल हर घडी तुम खुद को..हमारी यादों मे ही तड़पाओगे..
जी तोहफे तो लाख देना चाहते थे..मगर अब पुरानी तुम्हारी फितरत ना रही..
तुम तरस जाओगे सच्चे प्यार को एकदिन..मेरी तरफ से अब यही एक तोहफा सही..
हां माफ तो हम कर ही देंगे कभी..अब दिल लगाने की गुस्ताखी जो कर बैठे हैं..
सजा भी एक तोहफे मे सुना रहे हैं.. क्योंकि खुद के प्यार को जो हार बैठे हैं..
जी हां अब दुनिया को हंस के दिखाना पड़ेगा..
गमों को शर्म से छुपाना पड़ेगा..पल पल सुलगते घावों को..
अब कैसे तो सुहाना पड़ेगा..!!!
