सपनों का किस्सा !
सपनों का किस्सा !
एक कष्टी थी, किनारा था
कुछ अपनों का सहारा था..
एक चाॅंद था, सितारा था
उन लम्हों का कोई साया था..
कुछ फुरसतों से सवाॅंरा था
कुछ हसरतो का ठीकाना था..
पैगाम था, फरमाया था
बस वक्त को जैसे ना गवारा था..
फिर खोना था, या पाना था
इस गर्दीश मे न उसे होना था..
बस कविता का ही हिस्सा था
हाॅं ये मेरे सपनों का किस्सा था..।
