सुख
सुख
रोग हीन तन पहला सुख है, दूजा सुख होना धनवान ,
पत्नि निपुण सुख कहा तीसरा, सुख चौथा सुत हो गुणवान ,
जिसको सुख ये चारों मिलते, समझो कृपा करी जगदीश,
किंतु कभी भी गर्व न करना, खुद को कहना मत बलवान ।
रोग हीन तन पहला सुख है, दूजा सुख होना धनवान ,
पत्नि निपुण सुख कहा तीसरा, सुख चौथा सुत हो गुणवान ,
जिसको सुख ये चारों मिलते, समझो कृपा करी जगदीश,
किंतु कभी भी गर्व न करना, खुद को कहना मत बलवान ।