सुख-शांति हेतु संतुलन
सुख-शांति हेतु संतुलन
निज जीवन में सुख-शांति की इच्छा जो करनी है पूरी,
समायोजन करना ही होगा चाहे हो कुछ भी मजबूरी।
तन-मन-धन का सदा संतुलन बनाए रखना बड़ा जरूरी,
निज स्थिति का करें आकलन रखनी समस्याओं से दूरी।
आप हैं अद्वितीय किसी और जैसे हो न सकेंगे आप,
दूसरे जैसे होने के प्रयास में मिलेंगे विविध ही संताप।
दूसरों से प्रेरित हो दूसरों को प्रेरित करते रहिए आप,
शुभ अपनाना अति पुनीत और अशुभता बड़ा ही पाप।
सुझाव-प्रेरणा करें ग्रहण कहीं से अंतिम निर्णय खुद लेना,
धर्म-अधर्म निजी होता है कहेंगे लोग क्या? ध्यान न देना।
तन है धरोहर परमपिता की सुकर्म इसी माध्यम से ही होना,
मन को रखना सदा संयमित धन अर्जन में इनको मत खोना।
अत्यधिक-न्यून से बचकर रहना बनाए रखना है सदा संतुलन,
राग-द्वेष बाधाएं पथ की निरासक्त भाव में है रखना निज मन।
शिथिलता की अपनी सीमाएं कभी भी नहीं तोड़िए इनके बंधन,
जीवन में हरपल सुख-शांति रहेगी समायोजित जो रहे संतुलन।