सुबह की पहली किरण
सुबह की पहली किरण
जैसे सुबह की पहली किरण धरती को स्पर्श करती है,
वैसे ही माँ के हाथों का स्पर्श जो मेरे माथे को चूमती है,
ममता की मूरत मेरी माँ कड़ी धूप में छाँव बन जाती है
मन मेरा पावन हो जाता एक शीतल हवा सी बहती हैI
सुनहरी धूप परदे की ओट से घर के अन्दर झांकती जब,
परदे हटा देती अपने हाथों से मेरी निंद्रा को भांपती तब,
अधखुली आँखों से ही सबसे पहले माँ को सामने देखता हूँ,
दिल से हमेशा ही आँखों के सम्मुख उसको मैं रखता हूँ I
सुबह पक्षियों की चहचहाहट मधुर –मधुर सी लगती है,
अंगड़ाई ले उठ जाता माँ की वाणी जब कानों में पड़ती है,
>सुबह की पहली किरण मन में नया अहसास जगाती है,
माँ की मनोहर बातें मन में मेरे दृढ़ विश्वास दिलाती है I
सूरज की किरणें आते ही जैसे सारी कलियाँ खिल जाती है,
माँ की बोली सुन लगता पूरी दुनिया यहीं मिल जाती है,
मिश्री सी घोल देती उसकी बातें हर स्वर मीठा लगता है,
ठंडी –ठंडी चलती हवा धरती का सुख अलबेला लगता है I
किरणें संग लाती नई ताजगी, नई कहानी और नया जोश,
खो जाता आलस सारा सुबह की किरणें प्यारी लगती है,
माँ की बस एक प्याली चाय पूरे दिन में स्फूर्ति भर देती है,
सुबह की किरणों जैसे मेरी माँ भी मुझको प्यारी लगती है I