स्त्री
स्त्री
कैसी संसार की ये अजब माया है,
ये स्त्री तो सिर्फ काया ही काया है,
उसने आखिर यों क्या ही पाया है,
भावनाएँ तो बस सब ही जाया है।
जीवन का ही ये सबके सरमाया है,
कि हर एक का अपना ही साया है,
चारदीवारी में रह सब यों खोया है,
ऐसी हालत में पाया क्या जोया है।
यों जल कर हर रिश्ता निभाया है,
इस जलन में तुमने क्या ही पाया है,
कुछ नाम तो नहीं, बस अपनाया है,
रिश्तों को बस जोड़ना सिखाया है।