STORYMIRROR

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational

3  

Rajiv Jiya Kumar

Abstract Inspirational

स्थिरता

स्थिरता

1 min
206

मुझे अपनी राह में

उस दिन सुहानी सुबह

उस सुन्दर बगीचे

के बियाबान पिछवाड़े

सड़क पर गुजरते

सड़क मिल गई, 

पूछा मैंने

हो कैसी, कहाँ चली?


सुनते ही मुझसे यह

वह लपक मेरे पास आई,

हँसकर धीमे से फरमााई 

इतने दिनों की यारी

फिर भी भूलते हो भाई,

मैं कहाँ कभी कहीं जाती हूँ

बस रूक कर अपने

जगह पर स्थिर 

तुम पथिकों को मंजिल

तक लेकर आती हूँ,

स्थित प्रज्ञ हो कर्म के मर्म को

स्थिरता से समझा जाती हूँ।।

                


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract