सरपंच और पंच की खोज
सरपंच और पंच की खोज
जारी सरपंच और पंच की खोज है,
ग्रामीण की भारी -भरकम फ़ौज हैं ।
बंटने लगी खूब शराब की पेटियां,
पीने वाले हुए हैं दारू की मौज हैं ।
गली-गली में हो रही चहलकदमी,
बन-बन टोलियाँ निकलती रोज हैं ।
कन्नी काटने लगे जिनसे बिगड़ी है,
हाथ-पैर जोड़ मनावन की होड़ हैं ।
हाथी दांत दिखाने-खाने के और हैं,
मुख पर सेवा मन में भरा लोभ है ।
चौपाल में बैठ सर्वसम्मति बनाते हैं,
बैठने को तैयार नहीं चुनावी दौड़ है ।
हो गए मुंह मोटे बिगड़े है भाईचारे,
घर-घर में जन चौधर के सिरमौर हैं ।
अपनी-अपनी डफ़ली अपना राग है,
कई फुकरों की निकालनी मरोड़ है ।
मनसीरत भी चुनावी रंग में रंग गया,
हार-जीत के बिठाता नित्य जोड़ है ।
