स्पर्श का आभास
स्पर्श का आभास
तुम्हारे स्पर्श के आभास मात्र से
कितना कुछ बदल गया है
हवाओं में कहकहों की अनुगूंज है
आकाश झर रहा है प्रेम सा
पत्थर पिघल रहे हैं
पृथ्वी ने ओढ़ ली है हरियाली
और मन्द मन्द मुस्करा रही है।
जाने कितने उदासी के तटबन्ध
टूट टूट कर विलीन होने लगे हैं
तुम्हारे ही अस्तित्व में।
कभी झांको मेरी आँखों में
तुम्हारे अलावा है भी क्या इनमें।
कभी झांको मेरे मन में
पाओगे खुद को ही बदलते हुए
पतझड़ से बसन्त तक।
कभी प्रवेश करो
मेरे मस्तिष्क के इस विशाल संसार में
प्रवेश से अंत तक का सफर
एक चमकदार रास्ता सा बन जायेगा।
तुम्हारे स्पर्श के आभास मात्र से
बदली हुयी ये दुनिया
एहसास ही तो है।
देखो उचित लगे
उपयुक्त लगे,ज़रुरी लगे
तो एक निवेदन है
एक पल ठहर जाओ मेरे साथ
मेरी दुनिया में भी की
परिवर्तन का सिलसिला चलता रहे
तुम्हारे आने जाने की
अनगिनत कहानियों की तरह।
एक और दिलचस्प कहानी से
सब संतृप्त हो जाएं।