सपनों का गर्भपात !
सपनों का गर्भपात !
तुम्हारी
यादों के लिहाफ में
लिपट कर
बीती पूरी रात
न नींद आई
और न ही आई
सपनों की बारात
बस अधखुली आँखों में
तुझसे मुलाकातों के
चन्द लम्हें
गुदगुदा रहे थे तन-मन को
उसी कशमकश में
जाने कब हुई सुबह
और फिर
ऊग आया
वही रोजमर्रा का दिन
हो गया गर्भपात
अधपले ख्वाबों का
और तुम्हारी यादों का काफिला
सिमट कर
जा बैठा फिर से
भीतर कहीं
जो मुझमें था कहीं घुला-मिला
फिर किसी
एकांत-नीरव रात के इंतजार में
सपने-सा !
कभी तो रुकेगा
हर रात होने वाला
यह सपनों का गर्भपात,
गूंजेगी किलकारी कभी तो
मेरे भी मन आंगन में
पूर्णमासी के चांद-सा
होगा आकारित सपना
कभी तो मेरा भी !

