सपने
सपने
जख्म बड़ा पुराना है
दीमकों की ये बस्ती है
बेटी की आबरू यहाँ लुटती
बड़ी जल्दी है,
यहाँ लोग सभी अपने हैं
भीतर से ये कपटी है
दिल में वासना
इनके भीतर बसती है,
छोटा था तब जाना मैंने
ये मन्दिरों में ही पूजती हैं
वो रोज एक एक कदम पर
अंगारो पे ही चलती है,
घर से लेकर विद्यालय तक
कतारों में ही फंसती है
ये सच है यहाँ बेटी
गिर गिर कर ही संभलती है,
वो गिरती है वो उठती है
ये जिद लिए वो रोज जगती है
नन्हे नन्हे पैरों से
समंदर पर वो चलती है,
बड़ा हुआ तो जाना मैंने
अंधों की ये बस्ती है
दो हो या साठ साल की
यहाँ बेटी कहाँ सुरक्षित है,
वो कहती है ये देश नहीं है मेरा
ये पापियों की बस्ती है
इस देश की कहानी में
मेरी छिन्न भिन्न होती हस्ती है।