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Anandbala Sharma

Classics

3  

Anandbala Sharma

Classics

सपने

सपने

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सपने जो देखे थे कभी 

अधखुली आँखों से

नदी के किनारे रेत पर

उंगलियों से लिखते हुए।


सपने जो बुने थे कभी 

सुबह की गुनगुनी धूप में

सलाइयों पर ऊन से

उल्टे सीधे फन्दों को बुनते हुए।


सपने जो संजोए थे कभी 

मन की आँखों में

दूधिया चावलों के बीच 

कंकड़ों को चुनते हुए।


सपने होते हैं पूरे

बस उन्हें चाहिए 

थोड़ी जगह, हवा, पानी 

धूप और खुला आसमान।


जिंदगी से एक मौक़ा 

ओढ़ने के लिए समय की चादर 

एक चाहत उनको

बिखरने से बचाने के लिए 

और फिर देखिए 

सपनों को पूरा होते हुए।


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