सपने
सपने
सपने तो सपने होते हैं,
ये पूरे कहाँ हो पाते हैं..
टिमटिमाते दियों की तरह ये
जलते बुझते ये रहते हैं।
मन की अधूरी इच्छाओं को
ये पूरा भी कर देते हैं।
धुन इनकी जो लग जाये तो
जिंदगी भी ये बदल देते हैं।
गर लक्ष्य बना लो इनको तुम
सोने भी फिर नहीं देते हैं,
टिमटिमाते ये जुगनू से
ध्रुव तारा फिर बन जाते हैं।
सपने को हकीकत में बदलो
हाथ की ओट लगा कर तुम,
इनकी टिमटिमाहट रोक लो
सारे जग को आलोकित करो।
उनकी रश्मियों से तिमिर मिटाओ
चहुं ओर उजियारा फैलाओ,
जो सबके सपने सच होंगे
धरती आकाश मगन होंगे।
नित नई ऊंचाइयों को छूएंगे
इस धरा को स्वर्ग बना लेंगे।
सपनो की दुनिया से ही हम
हकीकत के महल सजा लेंगे।