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Usha Gupta

Classics

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Usha Gupta

Classics

सपने रंग बिरंगे

सपने रंग बिरंगे

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हैं सपनें अभिन्न अंग जीवन के,

आरम्भ हो जाते है देखने,

होश सम्भालते हैं बच्चे जब से,

रहते हैं देखते विभिन्न-विभिन्न,

रगों के सपनें अंत तक जीवन के।


कितना ही हो रंगहीन जीवन,

सपनें होते सदा रंगीन,

करते प्रेरित आगे बढ़ जीवन में,

कुछ कर गुज़रने की; जो कर दे,

जीवन्त जीवन को भर नये रंग।


होते हैं अलग-अलग सपनें,

जीवन के हर पड़ाव पर,

होता है उम्र और सपनों का,

चोली दामन का सा साथ परन्तु कभी-कभी,

ढ़लती उम्र में भी लेतें हैं देख सपनें जवानी के।


याद है मुझे मेरा सपना पहला,

रचाऊँगी ब्याह गुड़िया का,

आयेगा गुड्डा राजकुमार घोड़े पर,

पर नहीं करूगीं विदा गुडि़या को,

 रख लूँगी गुड्डे को अपने पास।


हुई बड़ी तो देखा सपना बनने का डाक्टर,

कर दी शुरू मेहनत कड़ी; पूरा करने को सपना,

थक जाती करते करते पढ़ाई जब,

तब आने लगा राजकुमार एक सपनों में,

भर देता वह ताज़गी से मन; भाग जाती थकन।


हुआ सपना पूरा, बन गई मैं डाक्टर,

आ गया राजकुमार सपनों वाला चढ़ घोड़ी,

ले गया सपनों के घर में बना संगिनी अपनी,

लगा ज्यों हो गये सपने सभी पूर्ण मेरे,

परन्तु नहीं; पीछा कहाँ छोड़ने वाले थे सपनें!


आया सपना बन एक नन्ही गुड़िया का,

लो गया हो सत्य; आ गई गुड़िया हमारी,

लिये साथ ख़ुशियाँ बेमिसाल और,

सपने हज़ार आँखों में,

गये जुट हम करने पूरा उन सपनों को।


आते रहे सपनें बदल-बदल रूप अपना,

कभी पूरे हो कर देते नवसंचार जीवन में,

कभी अधूरे रहे तो भर जाता जीवन अवसाद से,

परन्तु सपनें कभी न होते निराश,

फिर आ खडे़ हो जाते नये- नये अवतार में।

हैं सपने अभिन्न अंग जीवन के।


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