सपना "एक घर का"
सपना "एक घर का"
वो जिन्हें मैं बनाना चाहती थी अपना,
हाँ संजोया था मैंने भी एक घर का सपना ।
कई बार उसने तोड़ा कई बार मैंने जोड़ा।
मैं उम्मीद और विश्वास से बनाती,
वो बेवफाई, झूठ और छल से तोड़ जाता।
कौन कहता है कोशिश करो,
कोशिश करने वाला कभी हार नहीं पाता ।
अब हारी हुई मैं न चाहती हूँ कोई अपना,
अब हारी हुई मैं न चाहती हूँ कोई अपना,
माफ करना
अब न देखूंगी कोई सपना,
अब न देखूँगी कोई सपना।