*सफ़र*
*सफ़र*
उम्र भर ठहर जाऊं..
साथ तुम्हारे ?
अगर तुम चाहो ?
लेकिन ! मैं तो बहती,
नदी सी बनना चाहतीं हूं,
तिनका - तिनका,
जो बहा कर ,
ले जाना चाहतीं हूं,
रोप देना है, मिट्टी में,
गहराइयों तक ,
उस दाने को,
जो संभावना है,
भविष्य की,
क्या बहोगे ?
मेरे साथ इस,
सफ़र में .......
दूर तलक ,
अनंत यात्रा की ओर,
बढ़ते कदम कहां रुकते है ?
मीठे पानी से ,
मुझे हज़ारों जड़ों को,
सींच कर जीवन देना है...
पता है !
अनंत समुंदर खारा है,
अंतिम सत्य पर ,
उसकी गहराइयों में भी,
अपनी पहचान का
रास्ता बरकरार रखना है।