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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Inspirational

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Inspirational

सफर

सफर

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गौर से देखो तो सफर में कोई मजबूर नहीं,

थकना नहीं है भाई मंजिल हमसे दूर नहीं।

और पॉंव के छाले संभाले रखना,

लक्ष्य बिना केवल छालों से कोई मशहूर नहीं।


पॉंव तले कॉंटे और शोले भी होंगे,

विषैले विषधारी सांप और संपोले भी होंगे।

वह मंजर जब मौत से सामना होगा,

अंतिम बार सर धड़ से कुछ तो बोले भी होंगे।


यह रक्त है जरा आंच में खौले भी होंगे,

किसी पलड़े में खुद को तौले भी होंगे।

जरा कमर कस लो अदब से,

यह डगर है यहॉं मोड़ पर हिंडौले भी होंगे।


सुप्त प्रवाह नहीं एक लावा फूटता है मुझमें,

अंतर्द्वंद्व में कौन है जो मुझसे जूझता है मुझमें।

अपने पास रखो चंद रुपयों का खेल,

मैं कौन हूं?यह सवाल अंतर्मन पूछता है मुझमें।


दूर गगन में पुच्छल तारा टूट गया होगा,

अंतस में बंधा था जो बांध आज फूट गया होगा।

जनाजे पर मौन मृत्यु कर रहा सफर,

यह जीवन की डोर है साहब छूट गया होगा।


भला क्या दृश्य होगा यमराज के सवारी की,

मरणासन्न व्यक्ति के प्राण हरण तैयारी की।

मूछ ताने जरा अदब से निकला होगा,

मृत्यु आज अत्याचारी अनाचारी या किसी दुराचारी की।


क्या सफ़र मौत का खुशनुमा होगा,

जिंदगी की जज्बात से दाग बदनुना होगा।

हर पल कोई आरजू मुकम्मल होती है,

मुहब्बत हो जिंदगी से तो जिंदगी रहनुमा होगा।


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