सफलता का राज
सफलता का राज
चल रहा था मैं अकेला,
न साथ मेरे कोई मेला।
जिंदगी की मुश्किलें,
मन मीठी कुछ उलझनें,
करने है काम कई,
तुझे नाम काम कोई।
मंजिल अनजान थी,
काँटों भरी राह थी।
अचानक मोड़ पर,
जो मिल गए।
तब हम एक से दो नहीं,
एक और प्यार हो गए।
यह सफलता यह सम्मान
है उसी का येअंजाम।
आज प्यारी हर सुबह,
रंगीली है शाम।
इस उक्ति की सार्थकता को,
बारंबार प्रणाम जो दे पैगाम
एक और एक मिल जाये तो
दो नहीं ग्यारह बने ये जान।