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Garima Maurya

Tragedy

4.0  

Garima Maurya

Tragedy

सोचता हूं

सोचता हूं

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सोचता हूँ, के कमी रह गई शायद कुछ या

जितना था वो काफी ना था,

नहीं समझ पाया तो समझा दिया होता

या जितना समझ पाया वो काफी ना था,

शिकायत थी तुम्हारी के तुम जताते नहीं

प्यार है तो कभी जमाने को बताते क्यों नहीं,

अरे मुहब्बत की क्या मैं नुमाइश करता

मेरे आँखों में जितना तुम्हें नजर आया,

क्या वो काफी नहीं था I

सोचता हूँ के क्या कमी रह गई,

क्या जितना था वो काफी नहीं था I"


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