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Mayank Kumar

Abstract

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Mayank Kumar

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सोचो मत

सोचो मत

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रोज कुचल रहा हूं सपनों को

रोज सोचता हूं कि बदल रहा हूं


ऐसा आखिर कब तक होगा ?

आखिर मैं क्यों नहीं संभल रहा हूं


यह सोच पालकर कब तक बैठोगे

सामने दो मंजिल खड़ी है


या तो बिखर जाओ

या फिर निखर जाओ


क्या होगा यह मत सोचो

जो करना है, कर डालो


जो होना होगा होएगा

तुम तो नभ सा असीमित हो


तुम कई जीवन का जागरण हो

अब तो हनुमान बनो

असंभव को संभव करो।


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