संयम बनेगी जिंदगी
संयम बनेगी जिंदगी
सृष्टि के कल्याण हेतु
"खुद" पर उपकार कर
हे मनुज घरों में रह तू
घूम ना बाहर निकल कर
बाहर शत्रु फन फैलाए खड़ा है
तू भी अपनी जिद पर अड़ा है
कोई शस्त्र नहीं कोई शास्त्र नहीं
सारी दुनिया में ये फैला पड़ा है
थोड़ी सूझ और थोड़ा संयम
पालन करने है कुछ नियम
जीवन की रक्षा करने हेतु
धरती का ऋण चुकाने हेतु
जिनसे सृष्टि चलती है
सारी दुनिया पलती है
वो सूर्य - चंद्र तारामंडल
सब क्षितिज में विद्यमान हैं
जल, प्राणवायु सब मिल रहा
बाहर जाना आत्महत्या समान है