संतति का शुभेच्छु
संतति का शुभेच्छु
प्रगति करें हमसे भी ज्यादा,
इस सपने को जो है संजोता।
मां के संग संतति का शुभेच्छु,
हर एक पिता ही तो है होता।
मां के जैसा ही हितकारी होता,
शिशु के हित में रहता है बेचैन।
योजना बना करता है चिंतन,
चैन न लेता दिन हो या हो रैन।
भविष्य न हो सुरक्षित जब तक,
नहीं एक पल वह चैन से सोता।
मां के संग संतति का शुभेच्छु,
हर एक पिता ही तो है होता।
मात-पिता की प्रेम भावना का
सचमुच तब ही होता है अनुमान।
जब मिलती खुद को जिम्मेदारी,
बनते हैं मात-पिता पाकर संतान।
पितृ-प्यार पिता बन समझ है आता,
इससे पहले सच्चा अहसास न होता।
मां के संग संतति का शुभेच्छु,
हर एक पिता ही तो है होता।
हर एक पिता को निज बच्चों से,
बहुत ही अधिक होता है अनुराग।
क्षमता से कहीं ज्यादा श्रम करते हैं,
तत्पर रहते करने को कुछ भी त्याग।
मात-पिता का आदर-सेवा करें सदा,
सुख-स्वर्ग इनके चरणों में होता।
मां के संग संतति का शुभेच्छु,
हर एक पिता ही तो है होता।