सन्नाटा
सन्नाटा
कोरोना तेरे नाम ज़िन्दगी,
करते दिन- रात तेरी बंदगी ।
कोरोना से डर गए सब,
जीते जी ही मर गए सब ।
हादसों का कहर बड़ा है,
पटरी पर ही देश खड़ा है ।
कोरोना का कोहराम हुआ है,
जीवन अल्पविराम हुआ है ।
शहरों में पसरा सन्नाटा,
गाँव में है जीने की आशा ।
आशा की परिभाषा में ही,
कुंद सारा ज्ञान हुआ है ।
राम- श्याम की इस धरती पर,
कोरोना का व्याख्यान हुआ है ।
भूख- प्यास से व्याकुल तन है,
लेकिन उन्हें तनिक न ग़म है ।
कोरोना में खो गए कितने,
धुल- धूसरित हो गए सपने ।
कहीं आम, कहीं ख़ास हुआ है,
कोरोना का वास हुआ है ।
कोरोना का मकड़ जाल है,
इससे सब मानव बेहाल है ।।