फासले...
फासले...
यह मुश्किलों का दौर है
अब अपने ही घर में रहा करो
हम सामने न आएंगे
अब ख्वाब में ही मिला करो
कुछ फैसलों का है इम्तिहान
अब फासले ही फासले हैं, दरमियाँ
देश- विदेश में किया सफर
अब झेलो तुम एकाकी घर
ये जो जंग- ए- हालात हैं
अब कुछ दिनों की ही बात है
बदलियाँ सब छँट जाएँगी
हमारी दूरियाँ मिट जाएँगी
हम भी हैं हिज्रे- नकाब में
तुम कश्तियों के दबाव में
फिर महकते गुल खिलेंगे
दरो- दिवार फिर सजेंगे
कल नहीं कोई ख्वाब होगा
माहे चमन आबाद होगा
सब गलत फहमियाँ मिट जाएँगी
आलमी अमन का आगाज़ होगा
सुख- शांति का राग होगा
सल्तनते आबाद होगा।