संक्रमित हैं तुम्हारे प्रेम से
संक्रमित हैं तुम्हारे प्रेम से
संक्रमित हो चला है मेरा जीवन
माँ तुम्हारे अपनत्व से
प्रेम से, शक्ति से
दृष्टि से तुम्हारी ही पृथ्वी पर।
षड़यंत्र में तो सारा जहाँ हैं
अस्तित्व के ही विरुद्ध
जाहिल लोग पीछे लगे हुये हैं
अजीब सा उत्साह और उमंग
जाने कहाँ से आ रही है
एक अदद जीवन में।
कितनी सहजता से
पोषण कर रही हो
उनके ही बीच,
उनके मंसूबों के बीच
और हम भी जी रहे हैं
पुरानी रश्मों और रिवाजों को
निभाते निभाते
खुद में खोये खोये
सीख रहें हैं जीने का ढंग।
तुम्हारे होने भर से ही
पथरा जाते हैं दुश्मनी के मंसूबे
जैसे बारिश में पानी के
बुलबुले उठते हैं, फूटते हैं
वैसे ही विचार उठ रहे हैं फूट रहे हैं।
मेरी तो कोई सुनता नहीं या
मैं सुनाने का ढंग नहीं जानता
तो सुनाने का ढंग भी सिखा दो
या खुद ही कह दो मैं हूँ न।