संघर्ष से जीवन तक
संघर्ष से जीवन तक
कल अस्पताल में देखा, जीवन का एक और रूप,
जहाँ पीड़ा थी गहरी, पर आशा थी अनूप।
कहीं मौन में कराहें थीं, कहीं धैर्य की दीवार,
कहीं नयनों में संशय था, कहीं विश्वास अपार।
कोई श्वासों से जूझ रहा, कोई थामे जीवन-डोर,
कोई संयम का दीप जलाए, कोई करुणा से विभोर।
संजीवनी बनते कृत्रिम यंत्र, श्वासों को संबल देते,
हर धड़कन संग जाग्रत होते, नवजीवन के सपने लेते।
वैद्य करों में उपचार लिए, हर पीड़ा को हरने आए,
नयनों में है प्रार्थना गहरी, हर आह्वान सफल हो जाए।
कहीं प्रतीक्षा सुखद क्षणों की, कहीं हर पल दुआ बनी,
कोई दीप थामे खड़ा रहा, जब तक निशा नहीं ढली।
संघर्ष की तमिस्रा में भी, आशा के दीप जलते हैं,
जो कल ठहरे, आज वही, दृढ़ हो आगे बढ़ते हैं।
जीवन अपनी गति चले, हर क्षण नवप्रभात लिए,
हर धड़कन कहती – जीवन की मधुर सौगात लिए।
