जहाँ राम बसे – हृदय की अयोध्या
जहाँ राम बसे – हृदय की अयोध्या
राम जनम नभ गर्जना, भूमि पुलकित होय।
धरा दिशा सब पुलकती, मंगल गान संजोय॥
जननी कौशल्या हर्षिता, पाय रघुनंदन राय।
ध्यान धरें जब रूप वह, ब्रह्मा शंकर मुस्काय॥
मर्यादा के दीपक जोतें, अयोध्या में राम।
धर्म-ज्योति से राह जले, मिटे अधर्म तमाम॥
वचन पिता का मानकर, वन गमन स्वीकार।
साधु नीति नित कर गए, रघुवर सिंह समान॥
शब्द न बोले भाव कहें, चुप रहके बह स्नेह।
मर्यादा में पले जहाँ, राम बसे उस देह॥
सीता सम समर्पण रहे, लक्ष्मण जैसी रीति।
मन में हो हनुमान सा, निर्मल भाव प्रतीति॥
राम कथा हर मन रमे, सीता संग सुजान।
भक्ति हनू मन भाव से, करें चरण का गान॥
राम नवमी पर्व पर, कर लो मन निर्मल।
राम बसे उरभाव में, मिटे विकार सकल॥
