धैर्य से विजय
धैर्य से विजय
जब घनघोर घटाएँ छाईं, बूंदों का आघात हुआ,
नन्ही तितली सहमी, सारा जग अज्ञात हुआ।
डगमग करते कोमल पंख, थमे हुए थे एक ओर,
संयम से वह बैठी रही, धरती का था सहज ठौर।
न भय था उसमें, न अधीरता, न कोई पछतावा,
बस उचित समय की चाह में, सारा दुख बहलावा।
ज्यों ही रवि ने रश्मि बिखेरी, नभ में फैली ज्योति,
फिर चंचलता जाग उठी, फिर आई पंखों में गति।
फिर से मधुरस पीने चली, फूलों की थी राह वही,
बाधाएँ पलभर की होतीं, जीवन की यह सीख सही।
जीवन भी ऐसा ही तो है, जब बाधाएँ घेरें,
थोड़ा रुक, फिर चल पड़, यही सफल पथ के घेरे।
रात्रि के पश्चात सवेरा, तम मिटता हर बार,
जो धैर्य रखे, जो साहस करे, उसका हो उद्धार।
