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Ashish Srivastava

Inspirational Others

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Ashish Srivastava

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अमूल्य उपहार

अमूल्य उपहार

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मुझे रुचते वे उपहार, जो मन के तारों को छू लें, 
न हों विपणि के मूल्य-जाल में, न केवल शब्दों में झूमें।

वे क्षण, जो संग बहें स्नेह से, बिना प्रयोजन ठहर जाएँ, 
वे दृष्टियाँ, जो मौन कहें, जो नयनों से संवाद रचाएँ।

प्रिय वह समय, जो संग चले, न हो गणना की सीमा में, 
जो बस बैठे चुपचाप कहीं, आत्मीयता की तीरा में।

न चाहत है रत्न-हार की, न कंचन की अभिलाषा, 
बस कोई दे निज ध्यान-मधु, सहज भाव की परिभाषा।

स्नेह वह जिसमें छल न हो, विश्वास जहाँ अडिग ठहरे, 
सम्मान जो अंतर तक जाए, अंत:करण को उर में भरे।

न सत्कार का लोभ मुझे, न यश की कोई पिपासा है, 
बस सरलता की वह भाषा हो, जो मौन में भी आशा है।

ऐसे उपहार अमूल्य हैं, नहीं उन्हें मोल मिल पाता, 
हर जन दे पाए यह दुर्लभ है, हर मन नहीं समझ पाता।

इन उपहारों का मूल्य नहीं, ये निःस्वार्थ निधि समान, 
पर हर कोई दे सके इन्हें — यह सौभाग्य का विधान।


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