संभल जा तूं नादान !
संभल जा तूं नादान !
धन,पराक्रम ,वैभव...सब कुछ तेरे हिस्से आया ,
ज्ञान-विज्ञान से सारे जग को तूने छकाया ।
सोचो ! हे मानुष तुमने है क्या पाया ,
क्यों कुदरत को तूने था हाशिया दिखाया ।।
जो कुुछ ढूढ़े तूने जग से बाहर,
रे मूूूरख वह छिपा तुम्हारे अंंदर ।
चला था तू आइना दिखाने आखिर,
निकला जैसा शीशा पकड़े कोई बंंदर ।
अभी समय है संंभल जा तू नादान,
मत अंंधे बन छूता जा आसमान ।
कुदरत को मत करना तितर बितर,
वरना सीधा पहुंचेगा शमशान ।