समय
समय
समय बड़ा बलवान,
सभी इससे है हारे।
क्या राजा क्या रंक,
मूर्ख ज्ञानी बेचारे।
हरिश्चंद्र से नृप को,
इसने ऐसा नाच नचाया।
नीच डोम का बनाके नौकर,
मरघट को रखवाया।
नाथ अयोध्या के दशरथ,
घर ऐसा असर दिखाया।
राज तिलक की थी तैयारी,
वन को राम पठाया।
समय समय का खेल है,
इसने राजा रंक बनाये।
दर दर की ठोकर खाए,
तीन के सिर छत्र धराए।
समय बुरा था पाण्डव का ,
फिरते थे वन वन मारे।
समय बुरा लख श्याम,
बने रण छोड़ हमारे।
समय का पहिया सदा चले,
हम सबको राह दिखाए।
सही राह पर चलो यही,
हरदम हमको बतलाए।
जिसने ना रुख देखा इसका ,
की अपनी मनमानी।
वो रावण से ज्ञानी होकर,
मिटे न बची निशानी ।
रहे एक सा समय नहीं,
इसका भी ध्यान रखो ।
सबको अपने जैसा मानो ,
सुख सौभाग्य लखो।