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Sweta Sardhara "shwetgzal"

Romance

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Sweta Sardhara "shwetgzal"

Romance

સમર્પણ

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हवा बन के तेरे सांस में घुल रही हूं

मैं तुझ में थोड़ा थोड़ा पिघल रही हूं


मेरी अदा तो कबकी छूट गई मुझसे

अब तेरे लहजे में सबको मिल रही हूं


तेरी गोद में उछलती नदी सी बहती 

अब शांत शीतल जल मैं बदल रही हूं


बुरा कहा लगता है अब किसी बात का

मैं तेरी यादों में खुद से संभल रही हूं


मत तराशो कही और वजूद अपना 

तेरे लफ्ज बन के कागज़ पर खिल रही हूं


तू जरा सा थम सा गया है ‘ स्वेत ’ मैं

में बन के गजल सदा तुझ में चल रही हूं


 


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