समर्पण
समर्पण
मेरी जरूरत हो तुम
करु प्रेम अर्पण तुम्हीं हो समर्पण
मेरी नजाकत हो तुम
मेरी जरूरत हो तुम
जमीं पर तुम्हारे कदम न पड़े
पलको में तुमको सज़ा के रखूँ
आदाये तुम्हारी बड़ी कातिलाना
इनमें तो डूबा है सारा ज़माना
ज़माने से खुद को बचा के रखना
मेरी अमानत हो तुम
मेरी जरूरत हो...!
चेहरा तुम्हारा है कितना प्यारा
देखो तो सुंदर लगे हर नजारा
निगाहों में तेरे भरे मय के प्याले
इनको करदो तुम मेरे हवाले
बातों से तेरी खुश्बू सी आये
संदल सी महकती हो तुम
मेरी जरूरत हो...!
हिरनी के जैसी है चाल तुम्हारी
जुल्फे घटाओ के जैसी है प्यारी
लब है तुम्हारे या है कोई जादू
जो देखे तुम्हे हो जाये बेकाबू
फूलों से तेरी मैं रहे सजाऊ
मेरी सजावट हो तुम
मेरी जरूरत हो...!

