समर्पण
समर्पण
वो सिपाही बहादुर नौजवान वो साहसी
वो शौर्य खून खौलता था जिसमे अथाह
तैयार कवच में हथियारो से सजता
वो जोश कहर सा फुंकारता
है आज हुआ क्या क्यों बिखरा है तन मन
थके चाल पिसे हाल करने क्यों समर्पण
बाजू इसके थमने को क्यों आ गये
हथियारो की पूजा से क्यों घबरा गये
बेधड़क बेहिचक जो चले जाते थे
शत्रु को हर पल जो तड़पाते थे
गाँठ ढीली हुई क्यों कैसा टूटा यह बंधन
ओ प्यारो यह क्यों कर रहा है समर्पण
आज लगती क्यों इसको भारी जिम्मेदारी
हौसलो और भरोसे की नाव डूबे है क्यों
हम सबका प्रिय प्राण निडर शेर यह
जाता दुश्मन की ऒर टूटे पाँव क्यों
इसके चेहरे की रौनक वो रंगत किधर है
इसकी चहकती टोली की हरकत किधर है
बड़ी उलझन और हैरत में हैं साथी जन
सब के सब जा रहे करने क्यों समर्पण
हुआ क्या कुछ ऐसा हमें दिखता यह क्या
दुबके चूहे सा बन गया यह विषधर है क्यों
ऐसा कौनसा झौंका आकर के गया है
सिहरे हाथो में कांपती तलवार क्यों
अरे पुरखों की इज्जत की लाज तो रख लो
ओ शेरनी के बच्चो यूँ गिरते हो क्यों
यूँ घुटनो पे जाकर क्यों बिखरा तेरा मन
देख संकट को आते क्यों करता समर्पण
झूठ सा लुभावन यह दुश्मन का झांसा है
झुका सर भी तुझे क्या जीने की आशा है
इस छलिये की प्यास रुकते न रुकेगी
खतरनाक अजगर बन सब कुछ ही निगलेगी
क्यों थाली में परोसे जा रहा है स्वयं को
ऐसा क्या हुआ जो पाले तू वहम को
छोड़ के तू भरोसे यूँ भगवान् के सब
कब तानेगा सीना उठाये हथियार तू कब
तू लाल धरती का हम सबका दुलारा
हर गान में गूंजे तेरा नाम प्यारा
हम सबकी चिंता जो तुझको है आती
यह करके अगर वो दूर हो पाती
ओ सुन रे रणंजय, रणवीर सिपाही
यूँ लिखा अगर अपना सच में मिटना ही
तो बेहतर तू डट ले तलवार हाथो में
हमको भी थमा दे ले चल साथो में
भावो को कुछ ताव और मुंह पर आँखें चौड़ी
हमको भी सजाकर तेरी मेरी जोड़ी
एक खेल शिकार साथ में हम भी खेलें
हम सब भी तो कुछ पुण्य साथ में ले लें
सुन रे मेरे प्यारे वतन के सिपाही
तूने जो लहू से हर पल सींचा ही
इसी लाल गंगा से ही निर्मल हैं हम जन
दामन में हाथों में ले इस जल को पावन
पूजते और भजते तुम वीरो के गायन
तुम बिछड़े जब आते लाते खुशिया भर भर
लेकिन मेरे खातिर तू कुछ कर या न कर
क्या मैं हूँ क्या हम क्या मेरा घर आँगन
मिट जाऊं चाहे पर न करना समर्पण
न करना समर्पण न करना समर्पण