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Vikramaditya Singh

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Vikramaditya Singh

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होली

होली

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फाल्गुन चंद्र दूधिया चमचम

सूरज चैत का नव सुर सरगम,

दूध श्वेत शशि काल नहाये

अग्नि होलिका ले धधकाये,

श्वेत दूध संग रक्तिम रजनी

निखिल यु खिलकर रोम नहाये,

चैत आवागत हर्षण जगमग

दिवा रंग रौग़न मन ललचाये,

सरस सुशिल सुशीला सब सर

रंग खेप आडम्बर भर-भर,

लथपथ जसतस घुलमिल धर-धर

नर नारी जंतु रंग रस कर,

नील गगन रौग़न से धूसरित

मुख मंडल मन सब आच्छादित,

रंग राग रसभर आनंदित

चंद्र फाग पूरण कर चैता,

सौर संवतसर पग-पग धरता

प्राणी रस तर्पण मन चाहे

सृष्टि रूप ममता बरसाएं!


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