नारी को समर्पित
नारी को समर्पित


हे कुमारी आ तुझको आज मैं दुर्गा बना दूँ,
ले पकड़ तीखा खडग यह तिलक माथे पर लगा दूँ।
अब जो महिषासुर तेरे दामन को यदि छुएगा भी,
नेत्र कर रक्तिम उसकी भुजा को तत्क्षण उड़ा दे,
चीख जो निकलेगी उसमें काल की मुस्कान भर दे।
कमल कोमल सी सुशीला रह चुकी तू बहुत है,
देवी मेरी कवच-कुण्डल और शस्त्रों से सजा दूँ।
हे जननी आ तुझे मैं चंडिका का रूप दे दूँ,
ले पकड़ अब चक्र और मुष्टिका मज़बूत कर दूँ।
दुराचारी अब कोई जो तेरे तन को देख लेगा,
मौत मुख पर भय में चीखे तेरे वारों को सहेगा।
खून उसका भर कटोरे
स्नान करके शुद्ध कर दूँ।
अबला सी आँचल में दुबकी रह चुकी तू बहुत है,
पुण्य रूपा आ तुझे मैं युद्धविद्या भी सीखा दूँ
जगत जननी आ तुझे मैं जग के सिंहासन पर बिठा दूँ,
ले तू बाण, धनुष, खडग, त्रिशूल भी तुझको धरा दूँ।
मैं मुकुट अब इस जगत का अपने हाथों से सजा दूँ,
अब स्वयं दुशासनों की भुजा तू उखाड़ देगी,
अब स्वयं रावणो के छाती में त्रिशूल उतार देगी।
हे जगत की सृष्टिकर्ता चरणों में तेरे रहूँगा,
तेरा पुत्र बनकर सदा ममता शरण में मैं बसूँगा।