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Vikramaditya Singh

Abstract

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Vikramaditya Singh

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धरती माता करे पुकार (कोरोना)

धरती माता करे पुकार (कोरोना)

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सांस-सांस को तरस रहे हैं

दम घुटते से जकड़ रहे हैं

यूँ बेचैन खौफ पसरा जो

अंदर तक सिहरा-सिहरा जो


अब तुमको क्या पता चला है

मुझपर क्या-क्या गुज़रा है

मेरे पंछी भी पेड़ भी थे

नदिया सागर शेर भी थे


जंगल जंगली मोर भी मेरे

कितने ही बच्चे यूँ बिखरे

उनकी तुमने परवाह क्या की

उनकी क्या साँसे न थी ?


अब जब खौफ के साये में हो

याद ईश्वर को करते हो

जिसने साँसे दी हैं अब तक

एक सांस का पता नहीं जब


विनती मेरी समझो या मानो

कुछ दिन मौन हो खुद को जानो

अहंकार भर बहुत कर चुके

सब्र सहन को भी पहचानो

कुछ दिन अब तुम मौन हो जाओ

मैं साँसें लूँ बस चुप हो जाओ।


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