पावस
पावस
घुमड़ -हुमड़ छा काली घटा
रिमझिम बूँद बूँद पानी
छाये गड़गड़ाये मेघो संग
कुदरत ने कुछ करने की ठानी
ऐसे रिझाने नटखट ठाने पर
पावस तुझे में चूम लूं
तुझमे थोडा झूम लूं
गर्म तपन धरती मय्या की
चीख हताशा हर सुखिया की
तेरे बादल के दल देखे
नाच गान जग मस्त हो चहके
ऐसे आने जल बरसाने
तेरे इस विराट लीला पर
पावस तुझे मैं छुम लूं
तुझमे थोडा झूम लूं
तुझे देख उठते हिल खिलते
पेड पौध नव राग में लिपटे
बूँद बूँद छूती तुझसे जो
झुण्ड के झुण्ड उन्हें पाने को
टिप टिप बूंदे आँखें मूंदे
आ पड़ें सब मेरे मुख पे
पावस तुझे मैं छुम लूं
तुझमे थोडा झूम लूं
व्याकुल का अमृत भर है तू
बैरागी की मोहिनी
तेरे भाग में ही लिखी है
तू धरती माँ की भगिनी
तेरे सुकर्म इस चरित्र पर
धरा या दरिद्र को भर भर
पावस तुझे मैं चूम लूं
तुझमे थोडा झूम लूं
तू नदियों में नदियाँ तुझसे
हिलती मिलती इनसे हर चर
तुझमे नहा कर पाप सभी हर
निर्मल रह जाते सब केवल
गंगा में हो या यमुना में
तेरा ही जल अंजलि में भरके
ऐसी ममता अपार दयामयी
तू है एक और माता भी
पावस तुझे मैं चूम लूं
तुझमे थोडा झूम लूं
धरती माँ पर जब तब आये
सबका अस्तित्व बचाये
कृपा उमड़ती यूं बह बह के
तड़क भड़क न कर दिखावे
सभी तरह से निकले हर चर
तू कल्याणी ह्रदय को धर
चरण कहाँ मैं छुं लूं
पावस तुझे मैं चूम लूं
तुझमें थोड़ा झूम लूं
