गंगा
गंगा
किन धाराओं को संवारती
किन वनों में मधु स्वर भरती
किन जीवों संग करे इष्ठता
किन औषध को स्पर्श करके
किन द्रव्यों को धारण करके
किन वृक्षों का कर अभिवादन
किन पत्थरों का कर मर्दन
किन तालों का निर्माण कर
किन जीवों को तू धारण कर
किन लघु कणों को बहाकर
किन हिम खण्डों से नहाकर
किन पथिकों से विचार करके
किस मधुरता को तू धरके
किस सरलता को तू लेकर
किस शीतलता को प्रखर कर
कर उच्चताओं का परित्याग
किस समानता से ले ताप
किस ऊष्मा या प्रचंडता
किन मेघों जल संग मित्रता
किन मानवों के संग निर्मला
किन जलधारों से निर्धारित
किन उपधारों में विभाजित
किसे पोषण प्रदान करती
किस समाज की प्यास हरती
की तुम मेरे संग भी आना
नाद अपना अवश्य सुनाना