बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू
बालमन के घुंघरू चाचा नेहरू
निश्छल निर्मल स्वर्ण धरा पर,
कोमल संग मुस्कान लिए,
कच्ची मिट्टी सा मन है जिसका,
भविष्य जिसके भाल है,
नव निर्माण का जो आधार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू,
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू।
बहुत सारे दिवस है आते,
बालमन को कोई कोई पहचाने,
मासूमियत भरी जिनकी निगाहें,
नटखट निराली बोली जिनकी,
सत्य की जो ईश्वरत्व आधार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू,
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू।।
बच्चों संग बच्चे बन जाते,
भावनाओं का करते सम्मान,
प्रथम नागरिक के समान,
उनकी महिमा का कैसे करें बखान,
बच्चों के लिए हर पल करते जतन,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू,
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू।।
बच्चे है ईश्वरत्व की अनमोल देन,
मौलिक अधिकार है उनका हक,
फिर क्यूं मिलता नहीं वाजिब हक,
नेहरू जी ने उसे पहचाना,
उनके अधिकार दिलाने हेतु थे प्रतिबद्ध,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू,
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू।।
भावी पीढ़ी के कर्णधार,
शिक्षा मिले सभी को समान अधिकार,
बाल शोषण का सब मिलकर करें काम तमाम,
बच्चें करेंगे स्वछंद विहार,
तभी सपने होंगे साकार,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू,
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू।।
बाल दिवस पर आज करें विचार,
सब मिलकर बनाएं सुदृढ संसार,
ऐसा बनाएं चमन नाचे गाएं होकर मगन,
बच्चे मन के सच्चे, सारी जग की आंखों के तारे,
वो नन्हें फूल खिले भगवान को लगाते प्यारे,
जिसके मन भांप बजाते थे डमरू,
बालमन के घुंघरू वही थे चाचा नेहरू।।