चरण-रज
चरण-रज
शिष्य हूं मैं आपका मुझको "चरण-रज" दीजिए।
भटक गया सद-मार्ग से राह सुगम कर दीजिए।।
जो दिया उपदेश तुमने अर्जुन को जिस स्नेह से,
कर दो कृपा मुझ दीन पर भी शीघ्र ही उस भाव से।
बड़ा कठिन है समझना आपकी ये अनुभूतियां,
सूझ पड़ती ही नहीं "अध्यात्म" की बारीकियां।।
थकित हुआ जाता प्रभु अपनी शरण में लीजिए,
मुझ नीच को अपना बना जीवन सफल कर दीजिए।
दीन भिखारी बन प्रभु आ पड़ा तेरे द्वार मैं,
अबकी बार माधव ! तुम ही बताओ कैसे रिझाऊं मैं तुम्हें।
हे बांके बिहारी ! कर कृपा अब तो उद्धार कर दीजिए।
मुक्त कर भव-रोग से निज वरद हस्त रख दीजिए।।
