मेरे सपने
मेरे सपने
मेरे सपने मेरे अपने,
मेरे अपनो जैसे सपने।
कभी पास कभी दूर,
कही स्याह कही नूर।
कभी चलते कभी रुकते,
कभी उठते कभी गिरते,
गिरकर उठते और फिर चल पड़ते।
चलते - चलते मुझसे कहते,
उठ हिम्मत ना हार,
हम हैं तेरे साथ,
हमेेेशा-हमेेेेेेशा।
सचमुच,
ये सपने ही तो हैं,
जो हमें सोने नही देते।
और ग़र पूरे हो जाए,
तो रोने नहीं देते।
