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Sangeeta Agarwal

Inspirational

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Sangeeta Agarwal

Inspirational

आक्रोश

आक्रोश

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लोग कहते हैं, आक्रोश बुरा है,

पर हद में रहकर किया जाए

तो दबा के रखना में ही क्या रखा है ?


जब जब किसी पर अनुचित दबाब हो,

कोई बेवजह तोड़े आपके ख़्वाब हो,

तो कई बार सबक सिखाना भी

उसको जरूरी हो जाता है।

जिंदा हो तो जिंदा दिखना

भी न्यायसंगत है, मरी हुई

मछली की तरह लहर के बहाव

में चलना क्या आपकी फितरत है ?


क्रोध और आक्रोश, जब खुद

को जलाए, तब ही सज़ा हैं,

दूसरों के अपराध की सज़ा खुद

को देने में भला क्या मज़ा है ?


सही जगह पर दिखाया गया आक्रोश

धर्म बन जाता है, दुआएं भी दिलवाता है।

समय, परिस्थिति, परिवेश के अनुसार

आक्रोश करो, स्वयं को इंसान बनाये रखो।


या तो देवता या दोगला व्यक्ति ही

सही आक्रोश को दबा सकता है।

ज्वालामुखी को कौन भला कितनी

देर दबाए रख सकता है।

अत्याचारी के चरणों में झुक जाना

भी बुरा होता है, पापी का सिर कुचलना

भी पुण्य दिलवाता हैं।


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