बचपन
बचपन
कितना प्यारा बचपन होता है मिलावट से अनजान ,मदमस्त क़भी शैतान होता है गुस्सा आए तो चिल्लाता है प्यार मिले तो मिसरी सा घुल जाता है कितना प्यारा बचपन.........
शोख़ ,चंचल ,शैतान सभी ग़मों से अनजान शरारतों की दुकान होता है कितना प्यारा बचपन........
पसंद कुछ आए तो ज़िद्द वो करता है अपनी गलती हो जाए तो कितना वो डरता है ,दुनियादारी से अनजान कितना मासूम ये बचपन ........
कदम जवानी की दहलीज़ पर आता है बचपन जैसे छूट सा जाता है दिल की बात बताना मुश्किल हो जाता है दुनियादारी से पूरा मुवकिल हो जाता है कितना प्यारा बचपन होता है .........
दोस्त क़रीब और रिश्ते दूर हो जाता है कई कई ठोकरें
जीवन में खाते है जहाँ बचपन में एक ज़िद्द से सब मिल जाता था ,अब तो अरमान बड़े बड़े दिल में ही दफ़न हो जाते है क्यों हम बड़े हो जाते है कितना......,....
माँ को दिखा दिखा कर रोना ज़िद्द का हिस्सा होता है
अब तकलीफ़ में माँ से छुप छुप कर मन रोता है पता न चल जाए दर्द मेरा सोचकर तकिया भिगोता है कितना प्यारा बचपन होता है .........
दुनिया ठगती है सारी कहाँ माँ बाप सा प्यार होता है
हर रिश्ते एक फ़ायदा खोजते है मिलावट के दौर में कहाँ साथी सच्चा मिलता है कितना प्यारा बचपन होता है कितना प्यारा बचपन होता है ......
