समाज बदलता है
समाज बदलता है
समय के साथ साहित्य, समाज बदलता है।
विज्ञान बदलता है और लोक व्यवहार बदलता है।
सतयुग में देवता और दानवों के थे लोक अलग।
आया त्रेतायुग तो दोनों का धरती लोक पर ही बसर था।
द्वापर में तो दानव हो या देव,
दोनों का एक ही घर था।
आज एक ही मन में दोनों का वास है।
आविष्कार बहुत है, करना है उसका कैसे इस्तेमाल यह सब तुम्हारे ही हाथ है।
साहित्य की आज कोई कमी नहीं
जिसकी रही जो भावना उसने लिखा वैसा ही।
किसी ने विनाश और किसी ने विकास पर प्रकाश डाला।
बदलता समाज है,
भेड़ों की भीड़ से अनुगामी बहुत,
अपनी-अपनी ढपली और अपना अपना राग है।
कुछ ऐसा ही हो गया है आज का समाज।
कुछ पुरातनवादी विचारधारा के हैं और कुछ लोग हैं नए युग के।
अत्यंत आकर्षक भौतिकवाद के बीच में मानव रह गया है आज पास के।
समय के साथ साहित्य समाज बदलता है
हमने तो केवल वही लिखा है जो कि हमें दिखता है।
