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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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सकरात्मकता की शक्ति

सकरात्मकता की शक्ति

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सकारात्मकता की शक्ति

हमें यथार्थ की ओर लिये जा रही है

हम जीवन को और अधिक

करीब से देख रहे हैं

देख रहे हैं

मनुष्य अपने आधार से

भटका हुआ है

उसके जीवन के जो प्राकृतिक आधार हैं

वो उन्हें नजरन्दाज कर रहा है

और करता जा रहा है

उसकी मुश्किलें जो थीं

और बढ़ती जा रही हैं

और सकरात्मकता

एक समझ के रूप में

हमारे सामने आ रही है

शब्दों की तस्वीरें बन रही हैं

मनुष्य मनुष्य बन रहा है

और कृतज्ञता ब्यक्त कर रहा है

जीवन देने वाले के प्रति

कितनी मुश्किल से मिलता है जीवन

कितनी मुश्किल से सम्भलता है जीवन

और हमें तो बिना मांगे मिल जाता है

पर ये है कितना अद्भुत

जीना भी मरना भी है

चलना भी है ठहरना भी

बस समय की पहचान भर करनी है

कि कब क्या करें।


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