STORYMIRROR

mahima shankar 11 D

Abstract Inspirational

4  

mahima shankar 11 D

Abstract Inspirational

घरेलू हिंसा

घरेलू हिंसा

2 mins
367


जागो मेरी बहन जागो आंसू मत बहाओ

कब तक भूखे सोती रहोगी।

घरवालों की मार खाती रहोगी और

पति तुम्हारा सरेआम तुम्हें पीटता रहेगा।

उठो जागो और आवाज उठाओ

कितना सुंदर तुम्हें जीवनदान मिला है

जीवन में कुछ करके दिखाओ


 तुम अपना अपने लक्ष्य बनाओ

और लक्ष्य को मंजिल तक पहुंचाओ।

 संयम रखो बुद्धि रखो विवेक मत खो जाओ।

 जागो मेरी बहन जागो

आंसू मत बहाओ आंसू मत बहाओ।


 पति का प्यार कैसा होता है तुम नहीं जानती

और अपनी जीवन को यही नसीब मानती।

जागो और जीवन की नई राह बनाओ

आखिर कब तक सहती रहोगी अत्याचार।


अपने सवालों पर करती रहोगी विचार,

कैसे दिन कटेगा कह कर कर दिन गिनती है।

 एक दिन तुम मां-बाप की दुलारी थी

भाई-बहन की प्यारी थी

आज शादी

होते सब लोग बेगाना है 


अब तो तुम्हें अपना दिन अपने बनाना है,

तुम भी भूल गई मुस्कुराना।

खुलकर कब हंसोगी मेरी बहना

कई सवाल खुद से पूछती रहोगी मेरी बहना।


अब ज्यादा सोच मत जिंदगी ज्यादा दिन का नहीं

इसलिए कुछ कर स्वाबलंबी बन जा।

हाय हाय यह घरेलू हिंसा तेरा कैसा हाल बनाया

कि बहना अब तुम्हें देख मुझे रोना आया


यह कैसा शादी जिसमें सुख नहीं पाई

सिर्फ दुख ही दुख तुम पाई

डर ऐसा की पति के पास जाने से कतराई

कब तक जुल्म सहती रहोगी

कब तक जुल्म सहती रहोगी

आखिर कब तक लाचार रहोगी

कब तक भूखे सोती रहोगी


जागो मेरी बहन जागो

आंसू मत बहाओ जाकर थाना में रपट लिखाओ।

न जाने कब फंदा से लटका देगा या जला देगा

जागो जागो मेरी बहन जागो आंसू मत बहा।


Rate this content
Log in

More hindi poem from mahima shankar 11 D

Similar hindi poem from Abstract