रामायण ११ ;सीता स्वयंवर
रामायण ११ ;सीता स्वयंवर
मुनियों संग रंगभूमि में दोनों
राजाओं में सुशोभित ऐसे
सुँदर दो चन्द्रमाँ निकले
चमकें तारागण में जैसे।
जिसकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत तिन देखी तैसी
वीर रूप धारण किये हैं
रणधीर राजा देखें छवि ऐसी।
कुटिल राजा देखकर उनको
डर गए जैसे भयानक मूरत
राक्षस जो राजा बन कर आए
उनको दिखे काल की सूरत।
नगर वासिओं को लगे ऐसे
नेत्रों को देते वो सुख हैं
विद्वानों को दर्शन देते
विराटरूप, हजारों मुख हैं।
जनक कुटुम्ब को लगें हैं जैसे
कोई प्रिय सम्बन्धी आए
जनक जी और उनकी पत्नी को
बच्चों जैसे वो थे भाए।
इष्टदेव, हरिभक्त हैं देखें
योगी परमत्व रूप में
सुख और स्नेह मिल गया सीता को
श्री राम के उस स्वरुप में।
जनक उठे मुनि पास थे पहुंचे
सिर को चरणों में था डाला
राम लक्ष्मण और विश्वामित्र को
दिखलाई पूरी रंगशाला।
राम-लखन की शोभा देखकर
कुछ राजाओं ने था बोला
सीता वरेगी सिर्फ राम को
सुनकर कुटिलों का मन डोला।
बोले वरने न देंगे हम
चाहे करना पड़े युद्ध हमें
सीता को बुलाया जनक ने
रंगभूमि में आयीं, उसी समय।
रूप वर्णन न कर सके कोई
मधुर छवि नहीं देखी ऐसी
इस जगत में इतनी सुन्दर
युवती नहीं कोई उनके जैसी।
दर्शन था जब हुआ राम का
नेत्र हो गए एक जगह स्थिर
शरमा गयीं, झुक गईं पलकें
असहज थीं , संकुचा गईं फिर।
शिव धनुष रखा था जनक ने
जिसे छू न पाए,रावण, बाणासुर
प्रण किया था, जो तोड़ेगा
वरेगी सीता उसको आकर।
उठाने ही न गए कुछ राजा
तोड़ न पाएंगे, डर था उनको
और जिन्होंने कोशिश भी की
हिला भी न पाए धनुष को।
जनक क्रोध में बोले थे तब
आँखों में थी उनके लाली
ब्रह्मा ने रचा न सीता का वर
क्या धरती हो गयी वीरों से खाली।
सुनकर तिलमिला उठे लक्ष्मण
कहते अनुचित वचन तुम्हारे
पल में मैं तोड़ दूँ इसको
अगर आज्ञा दें श्री राम हमारे।
इशारे से लक्ष्मण को बिठाया
राम बैठे थे शांत गुमसुम
ख़तम करो संताप जनक का
मुनि कहा हे राम उठो तुम।
प्रणाम किया चरणों में गुरु के
एक हाथ से धनुष उठाया
तोडा बीच से भयंकर ध्वनि हुई
ये सब है श्रीराम की माया।
टुकड़े दो रख दिए पृथ्वी पर
उन्होंने सब का दिल था जीता
सतानंद ने आज्ञा दी तो
राम की तरफ चलीं तब सीता।
पहना दी सूंदर जयमाला
हर्षित हुए सब नारी नर
ऋषि मुनि और देवताओं ने
फूलों की वर्षा की उनपर।
