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Ajay Singla

Abstract

4.4  

Ajay Singla

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रामायण-१२;परशुराम से संवाद

रामायण-१२;परशुराम से संवाद

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जयमाला से तिलमिलाए कुछ राजा

तैयार हुए करने को युद्ध

परशुराम आए ,थे क्रोध में वो 

सबने खो दी थी तब सुधबुध।


परशुराम जी को वहां पर देख 

जनक जी ने प्रणाम किया

सीताजी ने भी सिर निवाया

उनका आशीर्वाद लिया।


राम और लक्ष्मण चरण छुएं

मुनि बताएं ये दशरथ पुत्र

टुकड़े धनुष के देख , पूछें मुनि से 

किसने तोडा, दो मुझे उत्तर।


न छोडूं मैं आज उस धृष्ट को

बताओ कौन है , लूँ मैं उसकी जान

सीता जी थीं बहुत व्याकुल

आधा क्षण बीता कलप समान।


लोगों को भयभीत देख

श्री रामचंद्र बोले,हे नाथ

शिव धनुष तोडने वाला होगा

आप ही का कोई एक दास।


जिस ने तोडा है शिव धनुष

 शत्रु हो जाये वो अलग 

क्रुद्ध हो कर बोले परशुराम                        

नहीं तो मरोगे तुम सब के सब।


लक्ष्मण थोड़ा मुस्करा दिए

परशु को मारें व्यंग्य बाण

लड़कपन में तोड़ी धनुहियाँ

न जाने कितनी, खिलौना जान।


इस धनुष में क्या कुछ खास है

हम को भी कुछ दे दो ज्ञान

सुन कुपित हुए फिर परशुराम

कहें, प्यारी नहीं क्या अपनी जान।


लक्ष्मण बोले, धनुष ही तो था

क्यों आप करें इतना आक्रोश

टूटा था हाथ लगाते ही

इसमें राम का नहीं है कोई दोष।


क्षत्रिय कुल का मैं शत्रु विराट

न जाने कितने दिए मार

भुजाओं के बल से पृथ्वी को

राजाओं रहित किया कई बार।


सहस्रबाहु की सारीं भुजा

काटी मैंने जब किया था वार

परसु का ये फरसा जो है

डरता इससे सारा संसार ।


लक्ष्मण ने कहा हंस कर, प्रभु

हम दिखाएँ न वीरता, पूज्य जान

आप भृगुवंशी, ब्राह्मण मुनि

रघुकुल में हम करते सम्मान।


ये बालक, कुबुद्धि,कुटिल है

विश्वामित्र से परसु बोले

उदण्ड और मूर्ख भी है ये 

उगलता विष, जब मुँह खोले।


लक्ष्मण परसु से कहें, हे मुनि

सूर्यवंशी न युद्ध से डरते

डरपोक लोग ही युद्ध क्षेत्र में

बस बड़ी बड़ी बातें करते।


हाथ में लेकर फरसा परशु

मारने को जब हुए तैयार

विश्वामित्र कहें, बालक है ये

न करो तुम इस पर वार।


फिर से लक्ष्मण करें व्यंग्य तो

राम ने इशारे से समझाया

शांति से बोले फिर, मुनिवर

बालकपन ने इसे भरमाया।


मुस्कुराहट लक्ष्मण के होठों पर

मुनि कहें, बालक ये पापी है

लक्ष्मण बोले जुड़वाँ देंगे

टुकड़े धनुष के जो बाकी हैं।


लक्ष्मण से फिर कहा राम ने

चुप हो जाओ, न बनो उदण्ड

जोड़ें हाथ कहा, हे मुनिवर

अपराधी मैं, मुझे दे दो दंड।


परसु बोले तेरा भाई खोटा  

हे रामचँद्र तू ले ये जान

पर तू भी थोड़ा टेढ़ा है

ब्राह्मण कह कह मुझे देता ज्ञान।


रघुवंशी रण में डरें न किसी से

कहें राम ये मेरे कुल की शान

पर ब्राह्मण वंश से डरते हैं हम

उनकी रक्षा को दे दें प्राण।


कोमल और रहस्यमयी वचन से

 शांत हुआ परसु का क्रोध

विष्णु धनुष जब राम की और चला

यही विष्णु हैं, हुआ ये बोध।


हाथ जोड़े ,बोले प्रभु हमको

क्षमा कीजिये,उनका भारी था मन

तप को चले तब परशुराम 

सभी नर नारी हुए प्रसन्न।



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